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Why did Lord Shiva wear a snake around his neck |
हिंदू धर्म (Hindu Dharma) में महाशिवरात्रि (Mahashivratri) का पर्व हर भारतीय घर में धूमधाम से मनाया जाता है। गली-मोहल्ले के मंदिरों से लेकर घर के पूजा-घर तक, भगवान शिव (Lord Shiva) और माता पार्वती (Mata Parvati) की पूजा का उत्साह देखते ही बनता है। इस दिन व्रत (Fasting) रखकर, शिवलिंग पर बेलपत्र (Belpatra) चढ़ाकर, और भोलेनाथ का नाम जपकर भक्त अपनी मनोकामनाएं (Wishes) पूरी करने की प्रार्थना करते हैं। लेकिन क्या आपने कभी गौर किया कि शिव के गले में सांप (Shiv ke gale me saap) हमेशा लिपटा रहता है? ये कोई साधारण बात नहीं, बल्कि इसके पीछे गहरा पौराणिक, आध्यात्मिक, और हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी (Daily Life) से जुड़ा संदेश छुपा है। आइए, भारतीय जीवनशैली के नज़रिए से जानें कि भगवान शिव ने अपने गले में सांप को क्यों धारण किया (Why did Lord Shiva wear a snake around his neck) और इसका हमारे लिए क्या महत्व है।
नागराज वासुकी की भक्ति (Nagaraj Vasuki ki Bhakti)
हमारे घरों में दादी-नानी अक्सर पुराणों की कहानियां सुनाती हैं। ऐसी ही एक कहानी है समुद्र मंथन (Samudra Manthan) की, जिसमें नागराज वासुकी (Nagaraj Vasuki) का ज़िक्र आता है। पुराणों के अनुसार, शिव के गले में सांप (Shiv ke gale me saap) का नाम वासुकी है, जो शिव के परम भक्त थे। हिमालय (Himalayas), जहां शिव का वास है, वहां नागवंशी (Serpent Clan) रहते थे, और शिव का उनसे गहरा लगाव था। इसका सबूत है नागेश्वर ज्योतिर्लिंग (Nageshwar Jyotirlinga), जो शिव और नागों के अटूट रिश्ते को दर्शाता है।
समुद्र मंथन के दौरान, जब देवता और असुर अमृत (Amrit) निकालने के लिए समुद्र को मथ रहे थे, तब वासुकी को रस्सी के रूप में इस्तेमाल किया गया। इस कठिन काम में वासुकी ने पूरी निष्ठा से भाग लिया। उनकी इस भक्ति और समर्पण से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें नागलोक का राजा (King of Nagalok) बनाया और अपने गले में आभूषण की तरह धारण करने का वरदान दिया।
हलाहल विष और नीलकंठ (Halahal Vish aur Neelkanth)
समुद्र मंथन की कहानी में एक और अहम मोड़ आता है। जब समुद्र से अमृत निकल रहा था, तब उससे पहले हलाहल विष (Halahal Vish) निकला, जो इतना खतरनाक था कि तीनों लोक (Trilok) तबाह हो सकते थे। उस वक्त भगवान शिव ने, जैसे कोई घर का बड़ा मुसीबत में कूद पड़ता है, उस ज़हर को पी लिया। माता पार्वती ने उनके गले में ज़हर को रोक लिया, जिससे शिव का कंठ नीला पड़ गया और वे नीलकंठ (Neelkanth) कहलाए।
लेकिन सांप का इस कहानी से क्या लेना-देना? सांप, जो ज़हर (Poison) का प्रतीक है, शिव के गले में लिपटकर ये बताता है कि शिव ने न सिर्फ ज़हर को सहन किया, बल्कि उसे अपनी ताकत बना लिया। शिव के गले में सांप (Shiv ke gale me saap) उनकी उस शक्ति का प्रतीक है, जो बुराई को भी अच्छाई में बदल देती है।
कुंडलिनी शक्ति (Kundalini Shakti)
भारतीय घरों में योग और ध्यान (Yoga aur Dhyan) की बात आम है। सुबह की सैर हो या रात को ध्यान, हर कोई अपनी सेहत और मन की शांति के लिए कुछ न कुछ करता है। शिव के गले में सांप (Shiv ke gale me saap) हमें कुंडलिनी शक्ति (Kundalini Shakti) की याद दिलाता है। ये वो आध्यात्मिक ताकत है, जो हमारे शरीर के मूलाधार चक्र (Muladhara Chakra) में सांप की तरह लिपटी रहती है।
शिव, जो आदियोगी (Adi Yogi) हैं, सांप को अपने गले में धारण करके दिखाते हैं कि वो इस ताकत को जागृत और नियंत्रित कर सकते हैं। जैसे घर में माँ अपने बच्चों की हरकतों को संभालती है, वैसे ही शिव इस शक्ति को संभालते हैं।
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