राणा सांगा (Rana Sanga) का शासनकाल और युद्धों की वीरगाथा

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महाराणा सांगा (Maharana Sanga)

Marana Sanga Ka itihas


महाराणा संग्राम सिंह (Maharana Sangram Singh), जिन्हें राणा सांगा (Rana Sanga) के नाम से जाना जाता है, मेवाड़ राज्य (Mewar Kingdom) के सबसे पराक्रमी शासकों में से एक थे। उनका शासनकाल 1508 ईस्वी से 1528 ईस्वी (1508 AD to 1528 AD) तक चला। वे सिसोदिया वंश (Sisodia Dynasty) से थे और उनकी वीरता तथा नेतृत्व ने उन्हें उस समय के सबसे शक्तिशाली शासकों में स्थान दिलाया।


राणा सांगा (Rana Sanga) ने लड़े कई निर्णायक युद्ध: कौन-कौन थे उनके दुश्मन?


अपने शासनकाल में राणा सांगा (Rana Sanga) ने अनेक शक्तिशाली शासकों के खिलाफ युद्ध लड़े। प्रमुख युद्ध इस प्रकार हैं:

  • मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी II (Mahmud Khilji II of Malwa) के खिलाफ युद्ध – जिसमें सांगा ने कई बार विजय प्राप्त की।
  • गुजरात के सुल्तान मुजफ्फर शाह (Muzaffar Shah of Gujarat) को हराकर पश्चिम भारत में प्रभाव स्थापित किया।
  • दिल्ली सल्तनत (Delhi Sultanate) के इब्राहिम लोदी (Ibrahim Lodi) के साथ युद्ध – जिसमें सांगा ने लोदी को पराजित कर अपनी शक्ति को उत्तरी भारत तक फैलाया।

अंतिम और निर्णायक युद्ध: बाबर (Babur) के खिलाफ खानवा (Khanwa) की लड़ाई


1527 ईस्वी (1527 AD) में खानवा (Khanwa) के मैदान में राणा सांगा ने मुगल शासक बाबर (Mughal ruler Babur) के खिलाफ आखिरी युद्ध लड़ा। उनके पास लगभग 1 लाख सैनिक (100,000 soldiers) थे, लेकिन बाबर की तोपों (Cannons) और तुर्की रणनीति (Turkish tactics) ने युद्ध का रुख बदल दिया।


बाबर ने अपनी आत्मकथा तुज़ुक-ए-बाबरी (Tuzuk-e-Babri) में राणा सांगा को "हिंदुस्तान का सबसे बड़ा खतरा" बताया और उनकी बहादुरी की भी प्रशंसा की।



राणा सांगा की मृत्यु: एक साजिश या वीरगति?


खानवा की पराजय के बाद भी राणा सांगा (Rana Sanga) ने हार नहीं मानी और पुनः बाबर से युद्ध की तैयारी शुरू की। लेकिन उनके ही अपने सरदारों द्वारा जहर देकर हत्या (Poisoned by his own nobles) कर दी गई। यह घटना 1528 ईस्वी (1528 AD) में हुई और इसके साथ एक वीर गाथा का अंत हो गया।



इतिहास में अमर हो गई राणा सांगा (Rana Sanga) की गाथा


राणा सांगा सिर्फ एक योद्धा नहीं थे, वे राजपूत एकता (Rajput unity) के प्रतीक थे। उनकी गाथाएं आज भी राजस्थान (Rajasthan) और पूरे भारत के लोकगीतों और कथाओं में जीवित हैं।



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