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Rathore Rajput History |
राठौड़ राजपूत एक सूर्यवंशी राजपूत कुल हैं, जो अपनी उत्पत्ति भगवान राम से जोड़ते हैं। ये खुद को सूर्यवंशी यानी "सूर्य के वंशज" मानते हैं, क्योंकि इनका संबंध सूर्य देवता से बताया जाता है। राठौड़ मुख्य रूप से मारवाड़ (राजस्थान) के रहने वाले हैं, लेकिन इनके वंशज गुजरात के इदार और बिहार के कुछ हिस्सों में भी बसे हुए हैं।
इनकी सबसे प्रसिद्ध इतिहास 1194 से शुरू होती है, जब शाहबुद्दीन मोहम्मद गोरी ने कन्नौज के राजा जयचंद को हराया था। जयचंद के पोते शेओजी ने मारवाड़ की ओर रुख किया और 1226 में पाली को जीतकर राठौड़ों का साम्राज्य फैलाया। लेकिन 1395 में राव चुण्डा के शासन में राठौड़ों ने मंडोर को अपने अधीन किया, जो मारवाड़ का ऐतिहासिक शहर था। इसके बाद राव जोधा ने 1459 में जोधपुर शहर की नींव रखी और मेहरानगढ़ किला बनाया, जो आज भी राठौड़ों की शक्ति और शौर्य का प्रतीक है।
राठौड़ों का साम्राज्य धीरे-धीरे बढ़ा, और इनका प्रभाव बीकानेर, किशनगढ़, आलिराजपुर, पुण्च, और अन्य क्षेत्रों में भी था। इनकी शासन शैली और वीरता के कारण ये राजपूतों के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। राव जोधा के बाद राठौड़ राज्य का स्वर्णिम युग शुरू हुआ, जब राठौड़ों ने अपनी संस्कृति, युद्ध कला और प्रशासनिक दक्षता को बढ़ावा दिया।
राठौड़ राजपूत का इतिहास
राठौड़ राजपूत एक महान और वीर वंश के लोग हैं, जो खुद को सूर्यवंशी मानते हैं। ये लोग अपने आप को भगवान राम के वंशज मानते हैं और इनकी उत्पत्ति कन्नौज से मानी जाती है। हालांकि, इनका असली इतिहास राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र से जुड़ा हुआ है। राठौड़ राजपूतों की शुरुआत 1194 में हुई थी, जब शाहबुद्दीन गोरी ने जयचंद के कन्नौज साम्राज्य को हराया। जयचंद के पोते शेओजी ने फिर मारवाड़ में अपनी जगह बनाई और यहीं से राठौड़ राजपूतों की शक्ति का आरंभ हुआ। इसके बाद राठौड़ राजपूतों ने धीरे-धीरे पूरे मारवाड़ इलाके में अपनी धाक जमाई और विभिन्न युद्धों में जीत हासिल की।
राठौड़ परिवार का सबसे बड़ा कदम तब आया जब राव जोधा ने 1459 में जोधपुर शहर की नींव रखी और यहाँ पर मेहरानगढ़ किला का निर्माण कराया। यह किला आज भी राठौड़ राजपूतों की शान और गौरव का प्रतीक है। इसके बाद राठौड़ राजपूतों ने 16वीं और 17वीं सदी में अपनी शक्ति को और बढ़ाया, और कई युद्धों में विजय प्राप्त की। राव मालदेव के समय में राठौड़ों का साम्राज्य अपने शिखर पर था, और उन्होंने मुगल साम्राज्य से भी संघर्ष कर अपनी स्वतंत्रता को बचाए रखा।
आज भी राठौड़ राजपूतों की संस्कृति, कला और वास्तुकला को सराहा जाता है। उनके द्वारा बनाए गए किले, महल और स्थापत्य कार्य उनके साम्राज्य की भव्यता और वीरता को दर्शाते हैं। जोधपुर का मेहरानगढ़ किला, मारवाड़ और राठौड़ संस्कृति आज भी लोगों के लिए एक प्रेरणा है। राठौड़ राजपूतों का इतिहास वीरता, संघर्ष और समृद्ध संस्कृति से भरा हुआ है, और उनके योगदान को कभी भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
राठौड़ राजपूत की कुलदेवी - नागणेची माता
नागणेची माता (Nagnechiya Maa) राठौड़ राजपूतों की कुलदेवी मानी जाती हैं, और उनकी पूजा राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र में विशेष रूप से की जाती है। इनका प्रमुख मंदिर जोधपुर जिले के नागाणा गांव में स्थित है, जो जोधपुर शहर से करीब 96 किलोमीटर दूर है। यह मंदिर राठौड़ वंश के प्रसिद्ध शासक राव धूहड़ ने बनवाया था, जिन्होंने कर्नाटका से नागणेची माता की मूर्ति मंगवाकर उसे नागाणा में स्थापित किया।
इस मंदिर की पूजा का इतिहास काफी दिलचस्प है। कहते हैं कि एक बार राव धूहड़ अपने मामा के घर गए थे, जहां मामा के पेट की बड़ी परत देखकर हंसी उड़ाई। इसके बाद मामा ने बताया कि उनके वंश की कोई कुलदेवी का मंदिर नहीं है। यह बात राव धूहड़ के दिल में घर कर गई, और उन्होंने ठान लिया कि वह अपने वंश के लिए एक मंदिर बनवाएंगे। गुरु लुंबा ऋषि के मार्गदर्शन में राव धूहड़ कन्नौज गए और वहां से चक्रेश्वरी माता की मूर्ति लेकर आए। जैसे ही वह नागाणा के पास पहुंचे, देवी ने कहा कि अब यहीं रुकना होगा। इसके बाद मूर्ति आधी जमीन में समा गई, और राव धूहड़ ने वहां एक मंदिर बनवाया। तभी से नागणेची माता की पूजा का सिलसिला शुरू हुआ।
नागणेची माता की पूजा महिषासुर मर्दिनी के रूप में की जाती है। वह शक्ति और विजय की देवी हैं, जिनकी पूजा राठौड़ राजपूतों के साथ-साथ सेवाड़ राजपुरोहित, सोढ़ा राजपुरोहित, और भंडारी (महेश्वरी) समुदाय भी करते हैं। उनकी मूर्ति के साथ सिंह और नाग के प्रतीक होते हैं, जो उनके रक्षक और शक्ति के प्रतीक माने जाते हैं। राठौड़ वंश के लोग मानते हैं कि नागणेची माता की पूजा से उनके साम्राज्य को बल मिलता है और राज्य मजबूत होता है।
नागणेची माता का मेला दो बार होता है - माघ शुक्ल सप्तमी और भाद्रपद शुक्ल सप्तमी। इन दिनों भक्त बड़े श्रद्धा से मंदिर में आते हैं, लप्सी और खाजा चढ़ाते हैं, और सात रंग की राखी बांधते हैं। इसके अलावा, जोधपुर और बीकानेर के कुछ अन्य स्थानों पर भी नागणेची माता के मंदिर हैं, जहां नवरात्रि और दशहरे के समय बड़ी धूमधाम से पूजा होती है।
इस देवी की पूजा के लिए खास मंत्र भी होते हैं, जिनका जाप भक्तों के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लाता है। इन मंत्रों में से एक प्रमुख मंत्र है -
"श्री नागणेची माता नमः चक्रेश्वरी बलस्थाने राठेश्वरी रठ"
नागणेची माता की पूजा में शुद्धता और श्रद्धा का बड़ा महत्व है। पूजा के दौरान भक्त लाल फूल, सुपारी, चंदन और दूध-पानी अर्पित करते हैं। इसके अलावा, माता को लापसी और खाजा का भोग भी चढ़ाया जाता है और सात धागे बांधकर माता से आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है।
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राठौड़ राजपूत वंश शाखाओं
राठौड़ राजपूत वंश के कई प्रसिद्ध शाखाएं हैं, जिनमें से हर एक का इतिहास और महत्व अलग है। इनमें प्रमुख शाखाएं हैं - मेरतिया, जैतावत, सिंधल, भदावत, उदावत, चंपावत, कुम्पावत, जोढ़ा, बिका, जैतावत, जैमलोत, पतावत, वाधेर, रुपावत, बलावत, चंदावत, और रैपालोत। इन शाखाओं के लोग अलग-अलग इलाकों में बसे हुए थे और हर एक ने अपने-अपने क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
इन शाखाओं के लोग न केवल अपने युद्ध कौशल और वीरता के लिए प्रसिद्ध थे, बल्कि उन्होंने समाज, संस्कृति और प्रशासन में भी अहम योगदान दिया। इन शाखाओं का ऐतिहासिक महत्व आज भी जीवित है, खासकर राजस्थान के विभिन्न हिस्सों में, जहां इन परिवारों के किले, महल और मंदिर देखने को मिलते हैं। तो अगर आप राठौड़ राजपूतों के बारे में और जानना चाहते हैं, तो इन शाखाओं का इतिहास भी बहुत दिलचस्प और प्रेरणादायक है!
राठौड़ राजपूत वंश एक बहुत ही प्रतिष्ठित और सम्मानित परिवार है, जो अपने अद्भुत वीरता, संघर्ष और प्रशासनिक कौशल के लिए जाना जाता है। इस वंश की कई शाखाएं हैं, जिनमें से हर एक का अपना ऐतिहासिक महत्व है। ये शाखाएं अलग-अलग इलाकों में फैली हुई हैं और उन्होंने अपने-अपने क्षेत्रों में बहुत योगदान दिया है। इन शाखाओं के लोग राजस्थान के विभिन्न हिस्सों में प्रमुख स्थिति में थे और आज भी उनके बारे में लोगों के दिलों में सम्मान और श्रद्धा है।
राठौड़ राजपूत वंश की प्रमुख शाखाओं में शामिल हैं
- मेरतिया - यह शाखा राठौड़ राजपूतों के लिए प्रसिद्ध मानी जाती है, जो राजस्थान के कई हिस्सों में बसे हुए थे।
- जैतावत - यह शाखा अपने संघर्ष और वीरता के लिए जानी जाती है। जैतावत शाखा के लोग हमेशा से ही अपने परंपराओं और संस्कृतियों के प्रति निष्ठावान रहे हैं।
- सिंधल - सिंधल शाखा राठौड़ वंश की एक और प्रमुख शाखा है, जिन्होंने अपने साहस और शौर्य से समाज में एक विशेष स्थान बनाया।
- भदावत - यह शाखा राजस्थान के कुछ महत्वपूर्ण क्षेत्रों में स्थापित थी और उनकी वीरता के किस्से आज भी सुनने को मिलते हैं।
- उदावत - उदावत शाखा के लोग राजस्थान के प्रमुख किलों और शहरों के शासक रहे हैं, और उन्होंने अपने क्षेत्र में कई युद्ध जीते थे।
- चंपावत - चंपावत शाखा भी राठौड़ राजपूतों में एक महत्वपूर्ण शाखा मानी जाती है। इसके सदस्य अपने संघर्ष के लिए जाने जाते हैं।
- कुम्पावत - कुम्पावत शाखा का इतिहास भी बहुत समृद्ध है और इनका नाम राजस्थान के वीर राजपूतों में लिया जाता है।
- जोढ़ा - जोढ़ा शाखा ने भी राठौड़ वंश के नाम को ऊंचा किया और अपने साहस से कई लड़ाईयां जीतीं।
- बिका - बिका शाखा राठौड़ राजपूतों की एक महत्वपूर्ण शाखा है, जिन्होंने कई अहम सैन्य अभियानों में भाग लिया और विजय प्राप्त की।
- जैतावत (फिर से) - जैतावत शाखा की महानता फिर से उल्लेखनीय है, जिनका योगदान भी राजस्थान के इतिहास में महत्वपूर्ण है।
- जैमलोत - जैमलोत शाखा के लोग भी अपनी वीरता और निष्ठा के लिए प्रसिद्ध हैं, और उनका इतिहास बहुत प्रेरणादायक है।
- पतावत - पतावत शाखा के लोग अपने संघर्ष और वीरता के कारण सम्मानित रहे हैं और उनका योगदान राजस्थान की संस्कृति में बहुत महत्वपूर्ण है।
- वाधेर - वाधेर शाखा ने भी कई महत्वपूर्ण युद्धों में हिस्सा लिया और अपने शौर्य से राजस्थान के इतिहास को चमकाया।
- रुपावत - रुपावत शाखा राठौड़ वंश के शूरवीरों में गिनी जाती है, जिनका योगदान आज भी उनके वंशजों द्वारा याद किया जाता है।
- बलावत - बलावत शाखा के लोग भी राठौड़ वंश की वीरता और सम्मान को बरकरार रखने वाले थे।
- चंदावत - चंदावत शाखा के लोग भी अपने साहस और पराक्रम के लिए प्रसिद्ध रहे हैं, और इनकी वीरता के कई किस्से आज भी सुनाए जाते हैं।
- रैपालोत - रैपालोत शाखा भी राठौड़ राजपूतों की एक अहम शाखा मानी जाती है, और इसके लोग अपने पराक्रम के लिए जानी जाती हैं।
ये सभी शाखाएं राठौड़ राजपूत वंश के गौरवमयी इतिहास का हिस्सा हैं, और इनका योगदान राजस्थान के इतिहास और संस्कृति में अनमोल है। इन शाखाओं के लोग न केवल युद्धों में शौर्य दिखाने के लिए प्रसिद्ध थे, बल्कि उन्होंने समाज के लिए भी बहुत कुछ किया। इनकी वीरता और सम्मान आज भी राठौड़ राजपूतों के दिलों में जीवित है और इनके किले, महल, और मंदिर आज भी उनकी महानता का प्रतीक बने हुए हैं। अगर आप कभी राजस्थान की यात्रा करें, तो इन शाखाओं से जुड़े ऐतिहासिक स्थल जरूर देखें, क्योंकि ये जगहें राठौड़ राजपूतों की महानता और संघर्ष को जीवित रखने का काम करती हैं।
इन शाखाओं का इतिहास सिर्फ राठौड़ वंश के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे राजस्थान और भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। हर शाखा की अपनी एक अलग कहानी है, जो आज भी लोगों के बीच सुनाई जाती है, और इनकी वीरता और शौर्य से आने वाली पीढ़ियां प्रेरित होती हैं।
राठौड़ राजपूतों का शासन - कानौज, मारवाड़, जांगलदेश और मालवा
राठौड़ राजपूतों का इतिहास बहुत ही दिलचस्प और शानदार रहा है। अगर आप राठौड़ राजपूतों के बारे में और जानना चाहते हैं, तो आपको ये जानकर बहुत अच्छा लगेगा कि इनका शासन भारत के चार बड़े और महत्वपूर्ण क्षेत्रों में था। ये थे—कानौज, मारवाड़, जांगलदेश और मालवा। इन क्षेत्रों में राठौड़ों का साम्राज्य एक ताकतवर और सम्मानजनक स्थिति में था। चलिए, आपको बताते हैं कि राठौड़ राजपूतों ने इन क्षेत्रों में कैसे अपना दबदबा कायम किया!
1. कानौज (Kannauj)
कानौज उत्तर भारत का एक ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण शहर था। यह शहर पुराने समय में बहुत प्रमुख था और राठौड़ राजपूतों ने यहाँ अपनी शक्ति और साम्राज्य स्थापित किया था। कानौज में राठौड़ों का शासन बहुत ही प्रभावशाली था। यह जगह ऐतिहासिक दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण थी, क्योंकि यहाँ पर कई बड़ी लड़ाइयाँ और राजनीति की घटनाएँ घटीं। राठौड़ राजपूतों ने यहाँ अपनी सामरिक ताकत और प्रशासनिक कौशल से इस क्षेत्र में एक मजबूत पकड़ बनाई थी।
2. मारवाड़ (Marwar)
अब बात करते हैं मारवाड़ की, जो राठौड़ राजपूतों का दिल था! मारवाड़, जो आजकल राजस्थान का हिस्सा है, राठौड़ों के लिए सबसे महत्वपूर्ण और बुनियादी क्षेत्र था। जोधपुर, पाली, और आसपास के इलाके राठौड़ राजपूतों के नियंत्रण में थे। यहाँ के किलों और किलों की दीवारों पर राठौड़ शासकों की वीरता और उनकी ताकत का इतिहास लिखा गया है। मारवाड़ में राठौड़ों की संस्कृति, आस्था और सैन्य क्षमता ने इस क्षेत्र को एक अहम जगह दिलाई। आज भी जोधपुर और आसपास के इलाके राठौड़ शासकों के इतिहास और प्रभाव को याद करते हैं।
3. जांगलदेश (Jangladesh)
अब थोड़ा और रारा सा नाम, जांगलदेश! ये क्षेत्र राजस्थान के जालोर और आसपास के इलाकों में स्थित था। यहाँ राठौड़ राजपूतों ने अपनी सेना और शौर्य का प्रदर्शन किया और अपना साम्राज्य स्थापित किया। जांगलदेश में राठौड़ राजपूतों का शासन संघर्षों और युद्धों के दौरान मजबूत हुआ। यहाँ के किले, दुर्ग और युद्ध के मैदान राठौड़ शासकों के बल और साहस का प्रतीक हैं।
4. मालवा (Malwa)
मालवा, मध्य भारत का एक और प्रमुख क्षेत्र, जहाँ राठौड़ राजपूतों ने अपनी ताकत का विस्तार किया। यह क्षेत्र आज के मध्य प्रदेश और कुछ हिस्सों में फैला हुआ था। यहाँ राठौड़ राजपूतों का शासन उनकी सैन्य शक्ति और शासकीय कौशल को दर्शाता है। मालवा में राठौड़ राजपूतों का शासन एक कड़ी मेहनत और संघर्ष का परिणाम था, और उन्होंने यहाँ अपनी सैन्य सामर्थ्य से बहुत प्रभाव छोड़ा। मालवा में राठौड़ों ने प्रशासनिक दृष्टिकोण से भी काफी बदलाव किए और यहां की संस्कृति और समाज में अपना अहम योगदान दिया।
राठौड़ राजपूतों के प्रिंसली राज्य
अगर आप राठौड़ राजपूतों के बारे में जानने के शौक़ीन हैं तो ये पोस्ट आपके लिए है! राठौड़ राजपूतों का इतिहास न सिर्फ राजस्थान, बल्कि भारत के कई हिस्सों में फैला हुआ है। उनकी सत्ता और प्रभाव बहुत विशाल था, और उनके द्वारा स्थापित किए गए कई प्रिंसली राज्य आज भी ऐतिहासिक धरोहर के रूप में हमारे सामने हैं। चलिए, जानते हैं राठौड़ राजपूतों के कुछ प्रमुख प्रिंसली राज्यों के बारे में!
1. मारवाड़ (1226-1949)
सबसे पहले बात करते हैं मारवाड़ की, जो राठौड़ राजपूतों का सबसे बड़ा और प्रसिद्ध राज्य था। जोधपुर के आसपास स्थित, ये राज्य 1226 से लेकर 1949 तक राठौड़ राजपूतों के अधीन था। मारवाड़ की संस्कृति, किलों और महलों में राठौड़ों की वीरता की गाथाएँ बसी हुई हैं। जोधपुर का Mehrangarh Fort तो वर्ल्ड फेमस है, जहां राठौड़ राजपूतों की शाही विरासत साफ़ दिखाई देती है।
2. बीकानेर (1488-1949)
बीकानेर को 1488 में राठौड़ राजपूतों द्वारा स्थापित किया गया था। यह राज्य राजस्थान के अन्य प्रमुख शहरों में से एक है, जहां की वास्तुकला और किलों में राठौड़ों का प्रभाव देखने को मिलता है। बीकानेर का किला और हवेली आज भी राठौड़ों के शौर्य का प्रतीक हैं।
3. बट द्वारका (गुजरात)
राठौड़ राजपूतों का शासन सिर्फ राजस्थान तक ही सीमित नहीं था। बट द्वारका, जो गुजरात में स्थित है, राठौड़ों के शासन में था। यह क्षेत्र उनके साम्राज्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था और यहां के किलों और मंदिरों में राठौड़ों की धरोहर बसी हुई है।
4. किशनगढ़ (1611-1949)
किशनगढ़ राज्य 1611 में स्थापित हुआ और राठौड़ राजपूतों ने यहां 1949 तक शासन किया। किशनगढ़ का किला, महल और पेंटिंग्स में राठौड़ों की सांस्कृतिक धरोहर बिखरी हुई है। यहां की कला और स्थापत्य राठौड़ों की ऐतिहासिक विरासत का प्रतीक है।
5. ईडर (1728-1949)
ईडर, जो आज गुजरात में स्थित है, राठौड़ राजपूतों के अधीन था। इस राज्य ने 1728 से लेकर 1949 तक राठौड़ों की सत्ता का अनुभव किया। यहां के किलों और महलों में राठौड़ों का शाही प्रभाव दिखाई देता है।
6. रतलाम (1651-1949)
रतलाम राज्य 1651 में स्थापित हुआ था और 1949 तक यह राठौड़ों के नियंत्रण में रहा। यह राज्य मध्य भारत में स्थित था और राठौड़ों के साम्राज्य का महत्वपूर्ण हिस्सा था।
7. सितामाऊ (1701-1949)
सितामाऊ, जो मध्य प्रदेश में स्थित था, राठौड़ राजपूतों के नियंत्रण में था। ये राज्य 1701 से लेकर 1949 तक राठौड़ों की शक्ति का प्रतीक था। सितामाऊ में राठौड़ों की ऐतिहासिक विरासत को महसूस किया जा सकता है।
8. सैलाना (1730-1949)
सैलाना राज्य 1730 में स्थापित हुआ और यहां 1949 तक राठौड़ों का शासन था। राठौड़ शासकों का यहां बहुत प्रभाव था, और उनकी संस्कृति और विरासत को आज भी यहां महसूस किया जा सकता है।
9. कोटड़ा (1350-1755)
कोटड़ा राज्य 1350 में स्थापित हुआ और 1755 तक राठौड़ राजपूतों के अधीन था। यहां के किलों और महलों में राठौड़ों की शाही धरोहर को महसूस किया जा सकता है।
10. आलिराजपुर (1701-1949)
आलिराजपुर राज्य 1701 में स्थापित हुआ और यह राज्य भी राठौड़ों के शासन में था। यह राज्य मध्य भारत में स्थित था और राठौड़ों के प्रभाव को आज भी वहां महसूस किया जा सकता है।
11. मांडा
मांडा राज्य भी राठौड़ राजपूतों द्वारा शासित था। इस राज्य का ऐतिहासिक महत्व बहुत था, और यहां की संस्कृति राठौड़ों की शाही धरोहर का हिस्सा बन गई।
12. पूंछ (1596-1798)
पoonच राज्य 1596 में स्थापित हुआ था और 1798 तक राठौड़ों के अधीन था। पoonच राज्य का किला और ऐतिहासिक स्थल राठौड़ों की वीरता और साम्राज्य को दर्शाते हैं।
13. अमृतपुर (1857-प्रस्तुत)
अमृतपुर राज्य 1857 में स्थापित हुआ और यह आज भी अस्तित्व में है। राठौड़ राजपूतों ने यहां लंबे समय तक शासन किया और यह राज्य अब भी अपनी ऐतिहासिक धरोहर को संजोए हुए है।
तो, यह थे राठौड़ राजपूतों के प्रमुख प्रिंसली राज्य। इन राज्यों ने भारतीय इतिहास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और राठौड़ राजपूतों की शाही और वीरता की विरासत को जिंदा रखा। अगर आप कभी इन स्थानों पर जाएं तो आपको वहां की ऐतिहासिक धरोहरों, किलों और महलों से राठौड़ों के गौरवशाली इतिहास का अहसास होगा।
निष्कर्ष
तो दोस्तों, उम्मीद है कि आपको राठौड़ राजपूतों के बारे में जो जानकारी मिली, वह आपको पसंद आई होगी! राठौड़ राजपूतों का इतिहास, उनकी शाखाएँ, और उनका योगदान भारतीय समाज और संस्कृति में बहुत महत्वपूर्ण रहा है। ये लोग न सिर्फ अपने साम्राज्य के लिए प्रसिद्ध हैं, बल्कि अपनी वीरता, संस्कृति, और कुलदेवियों की पूजा में भी बहुत श्रद्धा रखते हैं।
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